Summary

चेन्नई नगर के समुद्रतट पर महाकवि तिरुवल्लुवर की प्रतिमा है। इन्होंने तिरुक्कुरल् नामक एक पावन ग्रन्थ की रचना की है। इसमें सूक्तियों का संग्रह है। प्रस्तुत पाठ में इसी ग्रन्थ से सूक्तियों का संकलन किया गया है। पाठ का सार इस प्रकार है-
पिता पुत्र को विद्या रूपी महान् धन देता है। इसके लिए पिता अत्यधिक तपस्या करता है। यह पुत्र पर पिता का ऋण है।
जैसी सरलता मन में है, वैसी सरलता यदि वाणी में भी हो तो महापुरुष इस स्थिति को समत्व कहते हैं।
जो धर्मनिष्ठ वाणी को छोड़कर कठोर वाणी बोलता है, वह मूर्ख पके फल को छोड़कर कच्चे फल का सेवन करता है। सूक्तयः Summary Notes Class 10 Sanskrit Chapter 9
इस संसार में विद्वान् व्यक्ति ही वास्तविक नेत्रों वाले कहे जाते हैं। भौतिक आँखें तो नाममात्र के नेत्र हैं।
जो मन्त्री बोलने में चतुर, धीर तथा सभा में निडर होकर मन्त्रणा देने वाला है, वह शत्रुओं के द्वारा किसी प्रकार से पराजित नहीं होता है। जो व्यक्ति अपना कल्याण तथा अनेक सुखों की कामना करता है, वह अन्य व्यक्तियों के लिए कदापि अहितकर कार्य न करे।
सदाचार प्रथम धर्म कहा गया है। अतः प्राण देकर भी सदाचार की रक्षा विशेष रूप से करनी चाहिए।
जिस किसी के द्वारा जो कुछ भी कहा गया है, उसके वास्तविक अर्थ का निर्णय जिसके द्वारा किया जा सकता है, वह ही ‘विवेक’ कहलाता है।


Translation

  1. पिता पुत्र को बचपन में विद्यारूपी बहुत बड़ा धन देता है। इससे पिता ने क्या तप किया? यह कथन ही उसकी कृतज्ञता है।
  2. मन में जैसी सरलता हो, वैसी ही यदि वाणी में हो, तो उसे ही महात्मा लोग वास्तव में समत्व कहते हैं।
  3. जो धर्मप्रद वाणी को छोड़कर कठोर वाणी बोले, वह मूर्ख (मानो) पके हुए फल को छोड़कर कच्चा फल खाता है।
  4. इस संसार में विद्वान लोग ही आँखों वाले कहे गए हैं। दूसरों के (मूल् के) मुख पर जो आँखें हैं, वे तो केवल नाम की ही हैं।
  5. जिस किसी के द्वारा भी जो कहा गया है, उसके वास्तविक अर्थ का निर्णय जिसके द्वारा किया जा सकता है, उसे विवेक कहा गया है।
  6. जो मंत्री बोलने में चतुर, धैर्यवान् और सभा में भी निडर होता है वह शत्रुओं के द्वारा किसी भी प्रकार से अपमानित नहीं किया जा सकता है।
  7. जो (मनुष्य) अपना कल्याण और बहुत अधिक सुख चाहता है, उसे दूसरों के लिए कभी अहितकारी कार्य नहीं करना चाहिए।
  8. आचरण (मनुष्य का) पहला धर्म है, यह विद्वानों का वचन है। इसलिए सदाचार की रक्षा प्राणों से भी बढ़कर करनी चाहिए।

Backlinks

Sanskrit MOC