Summary

प्रस्तुत पाठ ‘शुकसप्ततिः’ नामक प्रसिद्ध कथाग्रन्थ से सम्पादित किया गया है। ‘शुकसप्ततिः’ के लेखक और काल के विषय में आज भी भ्रान्ति बनी हुई है। शुकसप्तति अत्यन्त सरल और मनोरंजक कथासंग्रह है। प्रस्तुत कहानी में अपने दो पुत्रों के साथ जंगल के रास्ते से पिता के घर जा रही बुद्धिमती नामक नारी के बुद्धिकौशल को दिखाया गया है जो अपनी चातुर्य से सामने आए बाघ को भी डरा कर भगा देती है।
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बुद्धिमती बाघ को समक्ष देख अपने पुत्रों को डाँटने का नाटक करती हुई कहती है कि झगड़ा मत करो। आज एक ही बाघ को बाँटकर खा लो फिर दूसरा देखते हैं। यह सुन ‘यह व्याघ्रमारी है’ ऐसा मानकर बाघ डरकर भांग जाता है। भयभीत बाघ को देखकर शृगाल बाघ का उपहास उड़ाता हुआ कहता है कि मुझे अपने गले में बाँधकर चलो जहाँ वह धूर्ता है। शृगाल के साथ पुनः आते बाघ को देखकर बुद्धिमती अपनी प्रत्युत्पन्नमति से शृगाल को ही आक्षेप लगाती हुई कहती है कि तुमने तीन बाघ देने के लिए कहा था। आज एक ही बाघ क्यों लाए हो?

यह सुनते ही शृगाल सहित बाघ भाग जाता है। इस प्रकार अपने बुद्धिबल से वह अपनी और अपने पुत्रों की प्राणरक्षा करती है।
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Translation

देउल नाम का गाँव था। वहाँ राजसिंह नाम का राजपुत्र रहता था। एक बार किसी जरूरी काम से उसकी पत्नी बुद्धिमती दोनों पुत्रों के साथ पिता के घर की तरफ चली गई। रास्ते में घने जंगल में उसने एक बाघ को देखा। बाघ को आता हुआ देखकर उसने धृष्टता से दोनों पुत्रों को एक-एक थप्पड़ मार कर कहा-“एक ही बाघ को खाने के लिए तुम दोनों क्यों झगड़ा कर रहे हो? इस एक (बाघ) को ही बाँटकर खा लो। बाद में अन्य दूसरा कोई ढूँढा जाएगा।”

यह सुनकर यह कोई व्याघ्र (बाघ को) मारने वाली है, ऐसा समझकर वह बाघ डर से व्याकुल होकर वहाँ से भाग गया। वह स्त्री अपनी बुद्धि द्वारा व्याघ्र (बाघ) से छूट (बच) गई। अन्य बुद्धिमान भी (इसी तरह) अपनी बुद्धि के बल से महान भय से छुटकारा पा जाते हैं।

सियार- स्वामी. जहाँ वह धूर्त औरत है वहाँ चलिए। हे बाघ! फिर वहाँ जाने पर वह सामने यदि स्थित रहती है तो तुम्हारे द्वारा मार दिए जाने योग्य हूँ।
बाघ-सियार! यदि तुम मुझे छोड़कर भाग जाओगे तो समय कुसमय में बदल जाएगा।
सियार-यदि ऐसा है तो मुझे अपने गले से बाँधकर जल्दी चलो।
वह बाघ वैसा ही करके जंगल की तरफ चल दिया। सियार के साथ बाघ को फिर से आते हुए दूर से देखकर बुद्धिमती ने सोचा-‘सियार के द्वारा उत्साहित बाघ से कैसे छूटकारा पाया जाए?’ परन्तु जल्दी से सोचने वाली उस स्त्री ने सियार को धमकाते हुए कहा-
“अरे धूर्त! तूने मुझे पहले तीन बाघ दिए थे, आज विश्वास दिलाकर भी तू एक को ही लेकर क्यों आया, अब बता।” ऐसा कहकर वह भय उत्पन्न करने वाली, व्याघ्र को मारने वाली जल्दी से दौड़ गई, अचानक व्याघ्र भी गले में बँधे हुए शृगाल को लेकर भागने लगा।
इस प्रकार से बुद्धिमती बाघ के भय से फिर से मुक्त हो गई। इसीलिए कहा जाता है-
“हमेशा हर कामों में बुद्धि ही बलवान होती है।”


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Sanskrit Source: https://www.learninsta.com/class-10-sanskrit-notes-chapter-2/