Summary

महाभारत में अनेक ऐसे प्रसंग हैं जो आज के युग में भी उपादेय हैं। महाभारत के वनपर्व से ली गई यह कथा न केवल मनुष्यों अपितु सभी जीव-जन्तुओं के प्रति समदृष्टि पर बल देती है। समाज में दुर्बल लोगों अथवा जीवों के प्रति भी माँ की ममता प्रगाढ़ होती है, यह इस पाठ का अभिप्रेत है।

प्रस्तुत पाठ वेद व्यास द्वारा रचित महाभारत ग्रन्थ के वनपर्व से उद्धृत है। जिसमें व्यास द्वारा कौरव प्रधान धृतराष्ट्र को समझाने का प्रयास किया गया है कि तुम पिता हो और तुम्हें अपने पुत्रों के साथ अपने भतीजों (पाण्डवों) के हित का ख्याल रखना है। प्रस्तुत प्रसंग में गाय के मातृत्व की चर्चा करते हुए गोमाता सुरभि और इन्द्र के माध्यम से यह बताया गया है कि माता के लिए सब संतान बराबर होती है उसके हृदय में अपनी सब सन्तानों के लिए समान स्नेह होता है।
जननी तुल्यवत्सला Summary Notes Class 10 Sanskrit Chapter 5 img 1
एक किसान दो बैलों से अपना खेत जोत रहा था। तभी उनमें से एक दुर्बल बैल हल चलाने व शीघ्र चलने में असमर्थ हो पृथ्वी पर गिर पड़ता है, तो किसान उसे उठाने का प्रयत्न करता है। भूमि पर गिरे हुए दुखित बैल (अपने पुत्र) को देखकर, माता सुरभि की आँखों से आँसू बहने लगते हैं। इन्द्र सुरभि से दुःख का कारण पूछते हैं तो सुरभि कहती है कि क्या आप नहीं देख रहे कि यह मेरा पुत्र किसान द्वारा पीड़ित किया जा रहा है। इन्द्र कहते हैं कि हजारों पुत्रों की माता होते हुए भी इस दीन पुत्र के लिए इतना स्नेह क्यों?
जननी तुल्यवत्सला Summary Notes Class 10 Sanskrit Chapter 5 img 2
माता सुरभि कहती है कि सभी सन्तानों के लिए माता समान स्नेह वाली होती है। परन्तु दुर्बल पुत्र पर माता का विशेष स्नेह होता है। सुरभि के वचन सुनकर इन्द्र का हृदय भी द्रवित हो जाता है फिर प्रचण्ड वायु के साथ वर्षा आरम्भ होने पर किसान बैलों को लेकर अपने घर आ जाता है।


Translation

कोई किसान बैलों से खेत जोत रहा था। उन बैलों में एक (बैल) शरीर से कमज़ोर और तेज़ी से चलने में असमर्थ (अशक्त) था। अतः किसान उस दुबले बैल को कष्ट देते हुए (ज़बरदस्ती) हाँकने लगा। वह बैल हल को उठाकर चलने में असमर्थ होकर खेत में गिर पड़ा। क्रोधित किसान ने उसको उठाने के लिए बहुत बार प्रयत्न किए, तो भी बैल नहीं उठा।

भूमि पर गिरे हुए अपने पुत्र को देखकर सब गायों की माता सुरभि की आँखों से आँसू आने लगे। सुरभि की इस दशा को देखकर देवताओं के राजा (इन्द्र) ने उससे पूछा-“अरी शुभ लक्षणों वाली! क्यों इस तरह रो रही हो? बोलो”। और वह-

हे कौशिक! तीनों दशाओं के स्वामी इन्द्र! कोई उसका सहायक नहीं दिखाई देता। मैं तो पुत्र की चिन्ता करती हूँ. अतः रो रही हूँ।

हे इन्द्र! पुत्र की दीनता को देखकर मैं रो रही हूँ। वह लाचार है। यह जानते हुए भी किसान उसे अकसर (अनेक बार) पीड़ा देता (पीटता) है। कठिनाई से भार (बोझ) उठाता है। दूसरे की तरह जुए को वह उठाने (ढोने) में समर्थ नहीं है। यह आप देख रहे हैं न? ऐसा उत्तर दिया।
“हे प्रिये! निश्चित ही। हजारों अधिक पुत्रों के रहने (होने) पर भी तुम्हारा ऐसा प्रेम इसमें क्यों है?” ऐसा इन्द्र के द्वारा पूछे जाने पर सुरभि बोली-

हे इन्द्र देव! जबकि मेरे हजारों पुत्र मेरे लिए सब जगह समान ही हैं तो भी कमजोर पुत्र के प्रति मेरी अधिक कृपा (प्रेम) है।

“मेरी बहुत सन्तानें हैं, यह सच है। तो भी मैं इस पुत्र में विशेष अपनत्व को अनुभव करती हूँ। क्योंकि निश्चय से यह दूसरों से दुबला (निर्बल) है। सभी, संतानों में माँ समान प्रेम वाली ही होती है। तो भी निर्बल पुत्र में माँ की अधिक कृपा सामान्य ही है।” सुरभि के वचन को सुनकर बहुत हैरान देवराज इन्द्र का भी हृदय पिघल गया। और उन्होंने उसे इस तरह सांत्वना दी- “हे पुत्री! जाओ। सब कुछ ठीक हो जाए।”
शीघ्र ही तेज़ हवाओं और बादलों की गर्जना के साथ वर्षा होने लगी। देखते ही सब जगह जल भराव हो गया। किसान अधिक प्रसन्नता से खेत जोतने से विमुख होकर बैलों को लेकर घर आ गया।

और सभी बच्चों में माता समान प्रेम भाव (रखने) वाली होती है। परन्तु पुत्र के दीन (दु:खी) होने पर वही माता उस पुत्र के प्रति कृपा से उदार हृदय वाली हो जाती है।


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