Summary

अन्योक्ति अर्थात किसी की प्रशंसा अथवा निन्दा अप्रत्यक्ष रूप से अथवा किसी बहाने से करना। जब किसी प्रतीक या माध्यम से किसी के गुण की प्रशंसा या दोष की निन्दा की जाती है, तब वह पाठकों के लिए अधिक ग्राह्य होती है। प्रस्तुत पाठ में ऐसा ही सात अन्योक्तियों का सङ्कलन है जिनमें राजहंस, कोकिल, मेघ, मालाकार, सरोवर तथा चातक के माध्यम से मानव को सवृत्तियों एवं सत्कर्मों के प्रति प्रवृत्त होने का संदेश दिया गया है।


Translation

  1. एक राजहंस से जो शोभा तालाब (नदी) की होती है। वह शोभा किनारों पर चारों ओर रहने वाले हजारों बगुलों से नहीं होती है अर्थात् एक विद्वान से संसार अथवा समाज का कल्याण (शोभा) होता है परन्तु उसी समाज में रहने वाले हज़ारों मूों से उसकी शोभा नहीं होती है।
  2. जहाँ आपने कमलनाल के समूह को खाया है, जल को अच्छी तरह से पीया है, कमल के फलों को सेवन किया हैं। हे राजहंस! बोलो, उस तालाब (सरोवर) का किस काम से किया गया उपकार चुकाओगे? अर्थात् जिस देश, जाति, धर्म और संस्कृति से हे मानव! तुम्हारा यह जीवन बना (निर्मित) हुआ है उसका बदला किस कार्य से चुका सकोगे? अतः इन सभी के ऋणी रहो और सम्मान करो।
  3. हे माली! सूर्य के तेज चमकने (तपने) पर गर्मी के समय में थोड़े जल से भी आपने दया के इस पेड़ की जो पुष्टि (बढ़ोतरी) की है। जलों को वर्षा काल के चारों ओर से धाराओं के प्रवाहों को भी बिखरते हुए (बरसाते हुए) बादल से इस संसार में वह (पेड़ की) पुष्टि क्या की जा सकती है? अर्थात् उत्तम और सम्पुष्ट जीवन जीने के लिए सुख अर्थात् सुखयुक्त वस्तुओं की अधिकता भी मानव जीवन को पूर्णतया सक्षम नहीं बनाती है। उसके लिए सुख अथवा दुःख भरे क्षणों की भी आवश्यकता होती है क्योंकि सुख और दुःख दोनों मानव जीवन के ही कंधे हैं और दोनों ही आवश्यक हैं।
  4. पक्षियों ने चारों ओर से आकाशमार्ग को प्राप्त कर लिए हैं। भौरे आम की मंजरियों को आश्रय बना लिए हैं। सरोवर तुम्हारे संकुचित होने (सूखने) पर अरे निराश्रित (अनाथ) मछली निश्चय से किस गति को प्राप्त करेगी (करे)। अर्थात् अपने एकमात्र सहारे रूप मित्र के बुरे दिन आने पर भी मछली उसका साथ पक्षियों और भौंरों की तरह नहीं छोड़ती है, वह उसी के साथ अपने प्राण भी दे देती है। अतः वही वास्तव में मित्र मानी जाती है।
  5. एक ही स्वाभिमानी पक्षी चातक (चकोर) वन में रहता है जो या तो प्यासा ही मर जाता है या फिर इन्द्र से (अपने लिए) वर्षा जल की याचना करता है। अर्थात् चकोर पक्षी की तरह संसार में स्वाभिमानी व्यक्ति भी अपने सम्मान व निर्धारित मर्यादा के साथ जीते हैं। नियमों से विरुद्ध अथवा अमर्यादित जीवन जीने की अपेक्षा वे मरना अधिक पसन्द करते हैं।
  6. सूर्य की गर्मी से तपे हुए पर्वतों के समूह को तृप्त करक और ऊँचे वृक्षों (लकड़ियों) से रहित वनों को (तृप्त करके) तथा अनेक नदियों और सैकड़ों नदों (नालों) को जल से पूर्ण (भर) करके भी हे बादल! यदि तुम खाली हो तो तुम्हारी वही उत्तम शोभा है अर्थात् श्रेष्ठ महादानी की तरह सबको अपने जलों से तृप्त करके भी तुम अपनी उदारता के कारण सदैव अतृप्त रहते हो यह तुम्हारी महान उदारता है।
  7. हे मित्र चकोर पक्षी! सावधान मन से क्षणभर (तनिक) सुनो। आकाश में निश्चय से बहुत से बादल हैं, परन्तु सभी ऐसे (एक जैसे) नहीं हैं। उनमें से कुछ धरती को बारिशों से भिगो देते हैं और कुछ बेकार में गरजते (ही) हैं, तुम जिस-जिस को (सम्पन्न) देखते हो उस-उस के आगे अपने दुःख भरे वचनों को मत बोलो। अर्थात् सभी के आगे अपने दुःख को प्रकट करके हाथ फैलाना उचित नहीं होता। इससे अपना अपमान होता है और सभी उदार भी नहीं होते हैं। अतः सभी के आगे रोना और माँगना उचित नहीं है।

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